1 अगस्त, 2025 से पहले ही 25% टैरिफ घोषित किया गया था, लेकिन ट्रम्प ने 6 अगस्त को एक नया कार्यकारी आदेश जारी किया जिसमें और 25% अतिरिक्त टैरिफ लगाकर कुल 50% कर दिया। यह कार्रवाई भारत द्वारा रूसी तेल आयात जारी रखने के कारण की गयी, जिससे व्यापार में तनाव बढ़ा।

ट्रम्प के 50% अतिरिक्त टैरिफ ने सबसे पहले भारत के परंपरागत बढ़त वाले निर्यात क्षेत्रों पर ज़ोरदार प्रभाव डाला है। वस्त्र एवं टेक्सटाइल्स उद्योग, जिसमें कपड़ों के साथ होम लिनेन और हस्तकरघा उत्पाद शामिल हैं, अब अमेरिकी बाजार में अपनी प्रतिस्पर्धात्मकता खोकर महंगा पड़ रहा है। इसी तरह रत्न व आभूषण उद्योग, विशेषकर हीरे-चुने की ज्वैलरी और मोती-मनके, अब पूर्व के मुकाबले 50% अधिक शुल्क के दबाव में आ गए हैं, जिससे अमेरिकी ग्राहकों को कीमत में भारी उछाल झेलना पड़ेगा।
समुद्री उत्पाद—खासकर झींगा और अन्य फ्रोजन समुद्री खाने की वस्तुएँ—भी इस टैरिफ तूफ़ान से अछूती नहीं रहीं। भारत का समुद्री निर्यात, जो पारंपरिक रूप से अमेरिका पर निर्भर था, अब महंगी हो जाने के कारण मांग में तेज गिरावट देख सकता है। चमड़ा एवं फुटवियर सेक्टर भी पेनल्टी से अछूता नहीं; बैग, बेल्ट, जूते इत्यादि पर नया शुल्क बढ़ने से इनकी बाजार क्षमता घटेगी। साथ ही केमिकल्स एवं रसायन, जैसे प्लास्टिक इंटरमीडिएट्स, पेंट, और फार्मा-कैमिकल्स, भी अमेरिकी ग्राहकों के लिए महंगे हो जाएंगे, जिससे उत्पादन इकाइयाँ वैकल्पिक स्रोत खोजने को मजबूर हो सकती हैं।
ऑटो पार्ट्स तथा यांत्रिक उपकरणों के निर्यात पर भी 50% का अतिरिक्त शुल्क लागू होने से भारतीय मैन्युफैक्चरर्स को भारी लागत संबंधी चुनौती का सामना करना होगा। इंजन पुर्जे, ब्रेक सिस्टम, गियर बॉक्स और कृषि-निर्माण मशीनरी जैसी वस्तुओं की कीमतों में बढ़ोतरी के चलते अमेरिकी खरीदार अब तुंरत वैकल्पिक देशों की ओर रुख कर सकते हैं। इन सभी प्रभावित सेक्टरों के सामने अतिरिक्त लागत, ऑर्डर कटौती और निवेशकों के घबराए निर्णय जैसी समस्याएँ हैं, जो अगले कुछ महीनों में निर्यात दिशा और आर्थिक माहौल दोनों को मोटे तौर पर प्रभावित करेंगी।
इन शेयरों का दबाव इसलिए बढ़ा क्योंकि इन कंपनियों की बिक्री का बड़ा हिस्सा अमेरिका से आता है। जब अमेरिका ने अचानक 50% टैरिफ बढ़ा दिया, तो भारतीय वस्त्र, गहने, झींगा और ऑटो पार्ट्स जैसी चीज़ें महंगी हो गईं। अमेरिकी खरीदार अब उतनी आसानी से खरीद नहीं पाएँगे, जिससे ऑर्डर कम होने लगे। ऑर्डर कम होने पर कंपनियों की आमदनी घटती है, जिससे उनके शेयरों की कीमत गिर जाती है।
दूसरी तरफ, ट्रम्प की संरक्षणवादी नीति ने निवेशकों को भी चिंतित कर दिया। वे जोखिम वाले मार्केट से पैसा निकालकर सुरक्षित जगह लगाना चाहते हैं। साथ ही अमेरिका ने भारत पर रूस से तेल खरीदने की वजह से नाराज़गी जताई, जिससे व्यापार तनाव और बढ़ गया। इन सब कारणों से मतलब निवेशक और ट्रेडर दोनों ने मिलकर इन क्षेत्रों के शेयर बेच दिए, जिससे बाजार में गिरावट आई।
शेयर बाजार में निवेशकों ने रिस्क-ऑफ मूड अपनाया है। निफ्टी और सेंसेक्स में व्यापक गिरावट दिखी, और छोटे निवेशक दुविधा में हैं।
Leave a Reply